दिल की नज़र से....

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बुधवार, 31 अगस्त 2016

अंजाम की फिक्र...!

तुम क्या गए, रौनकें गईं      इस जहान की,
ज्यों चांद छोड़ गया महफिल आसमान की।

वो तोड़ आया सारे रिश्ते          एक पल में,
अब ढूढ़ता निशानी        खुद के पहचान की।

बबूल के शूलों ने उसकी तक़दीर क्या लिखी,
वरना वो भी बेल थी,             मेरे मचान की

जब उधर से               पत्थरों की आमद थी,
इधर मस्जिद में थीं         रौनके अज़ान की। 

तमाम लानतें मुझपे भेज       वो चल दिया,
अब तक समझ ना आई फितरत इंसान की।

हर ओर जब           आईनों जैसे लोग मिले,
तब तलाशी ली            अपने गिरहबान की।

दिलचस्प आग़ाज़ था           उस कहानी का,
मुझे फिक्र थी                  उसके अंजाम की।

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